धनतेरस या धनत्रयोदशी दीपावली पर्व की शुरुआत का दिन होता है. यह दिन धन, आरोग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. इस दिन मां लक्ष्मी, भगवान कुबेर और धन्वंतरि देव की पूजा का विशेष महत्व होता है. साथ ही, इस शुभ अवसर पर 13 दीपक जलाने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है. मान्यता है कि ये दीपक सिर्फ घर में रोशनी ही नहीं फैलाते, बल्कि जीवन से नकारात्मकता, दुर्भाग्य और अकाल मृत्यु को भी दूर करते हैं.
पहला दीपक: मुख्य द्वार के बाहर या कचरे के पास दक्षिण दिशा की ओर रखकर सरसों के तेल से जलाएं. यह दीपक यमराज को समर्पित होता है और परिवार को अकाल मृत्यु से रक्षा देता है.
दूसरा दीपक: पूजाघर में देवी-देवताओं के सामने घी या केसर से जलाएं. इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में सौभाग्य आता है.
तीसरा दीपक: घर के प्रवेश द्वार पर रखें. यह नकारात्मक ऊर्जा को रोककर शुभता का मार्ग खोलता है.
चौथा दीपक: तुलसी के पौधे के पास रखें. तुलसी में लक्ष्मी का वास माना जाता है, जिससे घर में शांति और सुख बना रहता है.
पांचवां दीपक: घर की छत या ऊंचे स्थान पर जलाएं. यह घर की रक्षा करता है और वास्तु दोषों को दूर करता है.
छठा दीपक: पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल से दीपक जलाएं. इससे स्वास्थ्य और धन संबंधी परेशानियां दूर होती हैं.
सातवां दीपक: श्रद्धा और आस्था का प्रतीक यह दीपक मन की शुद्धता को बढ़ाता है.
आठवां दीपक: कूड़े या स्टोर रूम के पास रखें. यह दरिद्रता और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है.
नौवां दीपक: वॉशरूम या टॉयलेट के बाहर जलाएं ताकि वहां की अशुद्ध ऊर्जा निष्क्रिय हो जाए.
दसवां दीपक: यह दीपक घर को बुरी नज़र और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रखता है.
ग्यारहवां दीपक: घर की छत पर जलाएं ताकि वातावरण में आनंद और उल्लास बना रहे.
बारहवां दीपक: बेल के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है.
तेरहवां दीपक: घर के चौराहे या गली के मोड़ पर जलाएं. इससे जीवन में शुभ ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है.
धनतेरस पर जलाए गए ये 13 दीपक केवल प्रकाश ही नहीं फैलाते, बल्कि जीवन में धन, सेहत और खुशहाली के द्वार भी खोलते हैं. यही सच्चा “दीपोत्सव” है जो अंधकार नहीं, बल्कि आत्मा की रोशनी का उत्सव है.