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हर सांस में घुलता जहर: ग्रीन पटाखे भी नहीं बचा पाए दिल्ली को प्रदूषण से

दिवाली के बाद दिल्ली एक बार फिर जहरीली धुंध की चपेट में है। इस बार ‘ग्रीन पटाखों’ की अनुमति मिलने के बावजूद वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 350 से 500 के बीच पहुंच गया, जिससे साबित हुआ कि ये पटाखे भी प्रदूषण को काबू में नहीं कर पाए।

👤 Saurabh 21 Oct 2025 02:00 PM

दिवाली के बाद दिल्ली एक बार फिर घने धुंध के आगोश में है। सड़कों पर सफेद कोहरा और हवा में फैला धुआं मानो पूरे शहर को गैस चैंबर में बदल रहा हो। हर साल की तरह इस बार भी दिल्ली की हवा इतनी जहरीली हो गई है कि सांस लेना मुश्किल हो गया है। कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 500 के पार पहुंच गया है, जबकि औसतन स्तर 350 के आसपास दर्ज किया गया। सरकार ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP-2) लागू कर रखा है, लेकिन हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ते दिख रहे हैं।

पिछले सालों के आंकड़े बताते हैं डरावनी सच्चाई

सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR) के मुताबिक, पिछले साल दिवाली के अगले दिन दिल्ली का AQI 359 था। 2021 में तो ये आंकड़ा 454 तक पहुंच गया था। यानी ‘गंभीर’ श्रेणी में। उस समय पटाखों पर प्रतिबंध के बावजूद लोगों ने जमकर उल्लंघन किया, जिससे पहले से प्रदूषित हवा और जहरीली हो गई थी।

ग्रीन पटाखे भी नहीं कर पाए चमत्कार

इस साल दिल्ली में ‘ग्रीन पटाखों’ की अनुमति दी गई थी, जिनके बारे में दावा किया गया था कि ये 30% कम प्रदूषण फैलाते हैं। लेकिन आनंद विहार जैसे इलाकों में AQI 360 दर्ज किया गया, जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है। यानी ग्रीन पटाखों का असर सीमित रहा। पिछले साल की तुलना में थोड़ा सुधार दिखा, लेकिन सांस लेने लायक हवा अभी भी नहीं बन सकी।

कानून और हकीकत के बीच फंसी दिल्ली

दिल्ली-एनसीआर में सुप्रीम कोर्ट ने 2014 से पटाखों पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन इस आदेश का पालन शायद ही कभी पूरी तरह हुआ हो। हर साल की तरह इस बार भी प्रतिबंध और नियंत्रण के बावजूद लोग पटाखे जलाते दिखे। सरकार ने कोयले, लकड़ी और डीजल जनरेटर पर रोक लगाई, लेकिन दिवाली की रात आसमान फिर भी धुएं से भर गया।

पर्यावरण विशेषज्ञों की चेतावनी

पर्यावरण कार्यकर्ता भवरीन कंधारी ने कहा, “ग्रीन पटाखे कम जहरीले कहे जा रहे हैं, लेकिन क्या कोई कम जहर खाना चाहेगा? यह सिर्फ पर्यावरण नहीं, जन स्वास्थ्य का सवाल है।” उनका कहना है कि 30% कम प्रदूषण का दावा बेमानी है, क्योंकि बच्चों और बुजुर्गों के फेफड़ों पर इसका असर उतना ही खतरनाक रहता है।