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Abbas Ansari Case: इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश बना सियासत में चर्चा का विषय, जानें पूरा मामला

Abbas Ansari news: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विधायक अब्बास अंसारी की सजा पर रोक लगाई. अब मऊ सदर सीट पर उपचुनाव नहीं होगा. जानें पूरा मामला और राजनीतिक असर.

👤 Samachaar Desk 20 Aug 2025 03:24 PM

उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा मोड़ आया है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के विधायक और बाहुबली मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. हाईकोर्ट की जस्टिस समीर जैन की सिंगल डिविजन बेंच ने उनकी सजा पर रोक लगा दी है. इसके बाद मऊ सदर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव की संभावना खत्म हो गई है.

क्या है मामला?

अब्बास अंसारी ने वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में एक जनसभा के दौरान विवादित बयान दिया था. उन्होंने मंच से अधिकारियों के “हिसाब-किताब करने” की बात कही थी. इस बयान पर भारत निर्वाचन आयोग ने मामला दर्ज कराया और लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद एमपी/एमएलए स्पेशल कोर्ट मऊ ने 31 मई 2024 को फैसला सुनाते हुए अब्बास को दो साल की सजा और 3,000 रुपये जुर्माना लगाया. इसके बाद विधानसभा सचिवालय ने 1 जून को मऊ सदर सीट को खाली घोषित कर दिया था.

अब्बास की अपील और कानूनी लड़ाई

एमपीएमएलए कोर्ट के फैसले के खिलाफ अब्बास ने जिला अदालत का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां से उनकी अपील खारिज हो गई. इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया. हाईकोर्ट में उनकी ओर से अधिवक्ता उपेंद्र उपाध्याय ने पैरवी की. वहीं, यूपी सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्रा और अपर महाधिवक्ता एम.सी. चतुर्वेदी ने सजा पर रोक लगाने का विरोध किया.

हालांकि, अदालत ने सभी दलीलों को सुनने के बाद अब्बास अंसारी की सजा पर रोक लगा दी. इस फैसले से विधानसभा सचिवालय द्वारा घोषित उपचुनाव पर भी रोक लग गई है.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

गौरतलब है कि वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में अब्बास अंसारी ने मऊ सदर सीट से जीत हासिल की थी. उस समय समाजवादी पार्टी और सुभासपा में गठबंधन था और यह सीट ओम प्रकाश राजभर की अगुवाई वाली सुभासपा के खाते में गई थी. इसी कारण अब्बास ने सुभासपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और विजयी हुए.

राहत की सांस

हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अब्बास अंसारी और उनके समर्थकों ने राहत की सांस ली है. इससे न सिर्फ उनकी विधानसभा सदस्यता बच गई, बल्कि मऊ सदर उपचुनाव की राजनीतिक सरगर्मी भी थम गई है. यह फैसला यूपी की राजनीति और विपक्ष की रणनीति पर भी गहरा असर डाल सकता है.