Sawan 2025: क्यों निकाली जाती है कांवड़ यात्रा?
सावन का महीना आते ही शिवभक्त कांवड़ यात्रा पर निकल पड़ते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये परंपरा क्यों निभाई जाती है? आइए जानते हैं इसके पीछे की मान्यताओं और आस्था की वजहें.
समुद्र मंथन
मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया था, जिससे उनके शरीर में गर्मी बढ़ गई.
शिव को दी जाती है ठंडक
पौराणिक कथा के अनुसार, विष के प्रभाव से गर्म हुए शिव को शांत करने के लिए देवताओं और ऋषियों ने उन पर गंगाजल अर्पित किया था.
गंगाजल से जलाभिषेक
कांवड़िए हरिद्वार, गंगोत्री या गौमुख जैसे पवित्र स्थलों से गंगाजल भरकर पैदल यात्रा करते हैं और उसे अपने गांव या शहर के शिव मंदिर में ले जाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं.
संयम और नियम
कांवड़ यात्रा सिर्फ आस्था की नहीं, बल्कि संयम, सेवा और नियमों की परीक्षा भी होती है. कांवड़िए इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं.
भगवान शिव होते हैं प्रसन्न
ऐसा माना जाता है कि जो भक्त श्रद्धा से गंगाजल लाकर शिवलिंग का अभिषेक करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं.
कब शुरू हो रही है
इस साल सावन महीने की कांवड़ यात्रा 11 जुलाई से शुरू होगी, जिसमें लाखों शिवभक्त भाग लेंगे और गंगाजल लाकर भोलेनाथ को अर्पित करेंगे.
केवल धार्मिक नहीं
कांवड़ यात्रा न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर होती है, बल्कि यह सेवा, समर्पण और एकता का प्रतीक भी बन चुकी है.
Disclaimer:
यह जानकारी सामान्य ज्ञान पर आधारित है.