तुलसी विवाह का महत्व!
इस साल तुलसी विवाह 2 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा. इसे भगवान विष्णु और तुलसी माता के पवित्र मिलन का दिन कहा जाता है.
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, जालंधर नाम का राक्षस अपनी ताकत से देवताओं को पराजित कर रहा था.
वृंदा की पतिव्रता शक्ति
जालंधर की पत्नी वृंदा अत्यंत पतिव्रता थीं. उनके सतीत्व के कारण कोई भी योद्धा जालंधर को हरा नहीं पा रहा था.
देवताओं की व्यथा सुनकर विष्णु जी आगे आए
परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद मांगी. विष्णु जी ने बताया कि वृंदा का सतीत्व नष्ट हुए बिना जालंधर को हराया नहीं जा सकता.
विष्णु जी ने लिया ऋषि का रूप
श्रीहरि ने एक ऋषि का वेश धारण किया और छलपूर्वक वृंदा के पास पहुंचे, जिससे उनकी पतिव्रता भंग हो गई.
जालंधर की हार और वृंदा का क्रोध
वृंदा को जब सच्चाई का पता चला कि विष्णु जी ने छल किया, तो उन्होंने क्रोधित होकर उन्हें पत्थर बनने का श्राप दे दिया.
विष्णु बने शालिग्राम पत्थर
वृंदा के श्राप के कारण भगवान विष्णु का रूप शालिग्राम पत्थर में परिवर्तित हो गया, जो आज भी पूजा जाता है.
वृंदा बनी तुलसी
वृंदा ने अपने पति के साथ सती होकर आत्मदाह किया. उनके भस्म से तुलसी पौधे का जन्म हुआ.
तुलसी विवाह की परंपरा
भगवान विष्णु ने आशीर्वाद दिया कि वे सदा तुलसी के साथ रहेंगे. इसलिए हर साल कार्तिक मास में तुलसी विवाह किया जाता है.