बिहार की बात आते ही लिट्टीचोखा, सत्तू, दालभात और आलूभुजिया जैसे व्यंजनों की याद आना स्वाभाविक है. लेकिन क्या आपने कभी ‘भक्का’ का स्वाद चखा है? दिखने में यह इडली जैसा लगता है, लेकिन इसका स्वाद और बनाने का तरीका बिल्कुल अलग है. जहां इडली नमकीन होती है और सांभर या चटनी के साथ परोसी जाती है, वहीं भक्का हल्का मीठा होता है और इसे घी या मछली के साथ भी खाया जाता है.
भक्का बिहार के सीमांचल इलाकों, खासकर अररिया जिले में बहुत प्रसिद्ध है. यह व्यंजन खासतौर पर अक्टूबर से फरवरी के बीच सर्दी के मौसम में बनाया और खाया जाता है. ठंडी सुबहों में सड़क किनारे मिट्टी के चूल्हों पर बनता गर्मागर्म भक्का स्थानीय लोगों और यात्रियों दोनों को आकर्षित करता है. इसका स्वाद मुलायम और मीठा होता है, जो कुछकुछ बंगाल के पीठा जैसा लगता है.
भक्का की परंपरा काफी पुरानी है और माना जाता है कि इसे कलिहा समुदाय के लोग सबसे पहले बनाते थे. इसे पारंपरिक रूप से नाश्ते के रूप में खाया जाता था, लेकिन धीरेधीरे यह व्यंजन पूरे सीमांचल में लोकप्रिय हो गया. खास बात यह है कि इसे धान की कटाई के बाद ताजे चावलों के आटे से बनाया जाता है. चावल को हाथ से पत्थर पर पीसा जाता है और फिर मिट्टी के बर्तन में पकाया जाता है, जिससे इसका स्वाद और भी प्राकृतिक हो जाता है.
भक्का बनाने के लिए बहुत ज्यादा चीजों की जरूरत नहीं होती। बस कुछ साधारण सामग्री से यह बनकर तैयार हो जाता है
चावल या अरवा चावल गुड़ के टुकड़े भक्का बनाने का मिट्टी का बर्तन (मटका जैसी आकृति वाला) साफ सूती कपड़ा
अगर इसे मिट्टी के चूल्हे पर पकाया जाए, तो इसका स्वाद और भी प्रामाणिक लगता है.
सबसे पहले चावलों को रातभर पानी में भिगो दें. सुबह इन्हें हल्का सुखाकर पीस लें ताकि थोड़ा गीला आटा तैयार हो जाए. अब एक छोटी कटोरी में यह आटा भरें और बीच में गुड़ के टुकड़े डालें. ऊपर से फिर थोड़ा आटा डालकर कटोरी भर दें.
अब एक गहरे बर्तन में पानी भरें और उसके ऊपर कोई जाली या स्टैंड रखें. भरे हुए आटे की कटोरी को सूती कपड़े से ढककर बर्तन में रखें और भाप में पकाएं. करीब दो मिनट में भक्का तैयार हो जाता है. इसे आप गर्मागर्म घी के साथ खा सकते हैं. अगर नमकीन स्वाद पसंद है तो गुड़ की जगह बिना मीठा वाला भक्का बनाकर मछली करी के साथ भी खाया जाता है.
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