ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री पर लगाम कसने के लिए केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. हाल ही में कैबिनेट ने ऑनलाइन गेमिंग बिल को मंजूरी दे दी है. इस बिल का मुख्य उद्देश्य उन डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर रोक लगाना है, जो ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुए को बढ़ावा देते हैं. सरकार चाहती है कि देश के युवाओं को ऐसे खतरनाक ट्रेंड्स से बचाया जाए और डिजिटल इकोसिस्टम को सुरक्षित बनाया जाए.
बिल को लेकर ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों की चिंता बढ़ गई है. ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन (AIGF), ई-गेमिंग फेडरेशन (EGF) और फेडरेशन ऑफ इंडियन फैंटेसी स्पोर्ट्स (FIFS) ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर इस पर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है. इंडस्ट्री से जुड़े बड़े अधिकारियों का कहना है कि अगर यह बिल पास हो गया तो भारतीय यूजर्स अवैध और असुरक्षित बेटिंग ऐप्स की तरफ मुड़ सकते हैं.
फेडरेशन्स का तर्क है कि यह तेजी से बढ़ती गेमिंग इंडस्ट्री के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है. यह सेक्टर न केवल लाखों लोगों को रोजगार देता है बल्कि पीएम मोदी के 1 ट्रिलियन डॉलर की डिजिटल इकोनॉमी के विजन में भी अहम भूमिका निभा सकता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगर इस बिल पर अमल हुआ तो 4 लाख कंपनियों, 2 लाख नौकरियों, 25,000 करोड़ के निवेश और सालाना 20,000 करोड़ के जीएसटी कलेक्शन पर भी असर पड़ सकता है.
गेमिंग फेडरेशन का कहना है कि भारत में ऑनलाइन स्किल गेमिंग का वैल्यूएशन 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक है. यह इंडस्ट्री हर साल 31,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का रेवेन्यू जेनरेट करती है और सरकार को लगभग 20,000 करोड़ रुपये का टैक्स भी देती है. अनुमान है कि आने वाले वर्षों में यह सेक्टर 20% की दर से बढ़ेगा और 2028 तक इसका आकार दोगुना हो सकता है.
नए नियमों के तहत सभी डिजिटल और मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बेटिंग ऐप्स के विज्ञापनों पर पूरी तरह रोक लगाई जाएगी. इतना ही नहीं, इन ऐप्स को प्रमोट करने वाले सेलेब्रिटीज और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स पर भी कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
भारत में ऑनलाइन गेमर्स की संख्या 2020 में 36 करोड़ से बढ़कर 2024 में 50 करोड़ से अधिक हो चुकी है. ऐसे में यह बिल यूजर्स की सुरक्षा और समाज पर बढ़ते नशे जैसे जुए के प्रभाव को रोकने के लिए एक अहम कदम माना जा रहा है. हालांकि, इंडस्ट्री इसे अपनी ग्रोथ और रोजगार पर गंभीर खतरा मान रही है.
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