भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा में छठ पूजा का विशेष स्थान है. खासकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई इलाकों में यह पर्व गहरी श्रद्धा और अनुशासन के साथ मनाया जाता है. यह त्योहार न केवल सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का पर्व है, बल्कि यह परिवार की खुशहाली, संतान की लंबी उम्र और जीवन में समृद्धि की कामना का भी प्रतीक है.
इस वर्ष छठ पर्व 27 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा, जो कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर चार दिनों तक चलता है. यह पर्व अपनी पवित्रता, नियमबद्धता और सामाजिक सहभागिता के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है.
छठ पूजा का मूल उद्देश्य सूर्य देव और छठी मैया की कृपा प्राप्त करना है. सूर्य को जीवन का स्रोत माना गया है – वे न केवल प्रकाश देते हैं, बल्कि ऊर्जा, सेहत और संतुलन भी प्रदान करते हैं. छठी मैया, जिन्हें सूर्य देव की बहन के रूप में पूजा जाता है, संतान की रक्षा और परिवार की समृद्धि की देवी मानी जाती हैं.
व्रती – जो अधिकतर महिलाएं होती हैं इस पर्व के दौरान कठिन व्रत रखती हैं। वे चार दिन तक विशेष नियमों का पालन करती हैं, जिनमें एक दिन का निर्जल उपवास भी शामिल है. व्रती न केवल अपने परिवार की सुख-शांति के लिए, बल्कि आत्मशुद्धि और आत्मनियंत्रण के उद्देश्य से भी इस पर्व का पालन करते हैं.
छठ पर्व एक विस्तृत और नियमबद्ध प्रक्रिया है, जो चार दिनों तक चलती है:
1. नहाय-खाय (पहला दिन): व्रती पवित्र नदी या तालाब में स्नान कर सादा भोजन करते हैं. इससे शरीर की शुद्धि का आरंभ होता है. 2. खरना (दूसरा दिन): दिनभर उपवास और रात में गुड़-चावल की खीर और रोटी का सेवन किया जाता है. इसके बाद 36 घंटे का निर्जल व्रत शुरू होता है. 3. संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन): व्रती डूबते सूर्य को नदी या तालाब में जाकर अर्घ्य देते हैं. यह दृश्य बेहद भावुक और भव्य होता है. 4. उषा अर्घ्य (चौथा दिन): अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और व्रत का समापन होता है.
सूर्य देव को वैदिक काल से ही जीवनदायी देवता माना गया है. छठ पर्व में उनकी पूजा से शरीर में ऊर्जा, रोगप्रतिरोधक क्षमता और मानसिक शांति का संचार माना जाता है. वहीं, छठी मैया लोकमान्यताओं में एक शक्तिरूपा देवी हैं, जो मातृत्व, सुरक्षा और जीवन के संतुलन की प्रतीक मानी जाती हैं.
इस पर्व के दौरान व्रती सूर्य को दोनों अर्घ्य देते हैं – एक अस्त होते सूर्य को और दूसरा उगते हुए सूर्य को. यह प्रतीकात्मक है – जीवन के उतार-चढ़ाव दोनों को सम्मान देना, अंधेरे के बाद उजाले की कामना करना.
छठ पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह समाज में सामूहिकता, सहयोग और शुद्धता का संदेश भी देता है. पूरा समुदाय एक साथ नदी किनारे इकट्ठा होता है, साफ-सफाई, भजन-कीर्तन और पूजा की व्यवस्थाओं में भाग लेता है.
यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि शरीर की तपस्या और मन की भक्ति जब साथ आती है, तो आध्यात्मिक उन्नति संभव होती है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी इसमें भाग लेते हैं, जिससे पारिवारिक और सामाजिक संबंध और अधिक मजबूत होते हैं.
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